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बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

प्रेम जनमेजय को व्यंग्यश्री-2009 सम्मान





‘आध्ुनिक जीवन विसंगतियों से भरा हुआ है और बाजारवाद ने तो हमारे जीवन की स्वाभाविकता को नष्ट कर दिया है। व्यंग्यकार अपने समय का समीक्षक होता है इस कारण समाज में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। व्यंग्यकार का कर्म मनोरंजन करना कतई नहीं है, उसका कर्म तो ऐसी रचना का सृजन करना है जो सोचने का बाध्य करे। प्रेम जनमेजय अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यंग्य की इसी भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। उनकी रचनाओं में विनोद नहीं है अपितु विसंगतियों को लक्षित कर एक संवेदनशील रचनाकार की उभरी पीड़ा है।’ यह उद्गार प्रख्यात आलोचिका डाॅ0 निर्मला जैन ने, प्रतिष्ठित व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय को तेरहवें व्यंग्यश्री सम्मान से सम्मनित किए जाने पर, अपने अध्यक्षीय भाषण में अभिव्यक्त किए गए। व्यंग्य-विनोद के शीर्षस्थ रचनाकार पं0 गोपालप्रसाद व्यास के संबंध् में डाॅ0 जैन ने कहा कि व्यास जी ने उर्दू के गढ़ दिल्ली में हिंदी का अलख जमाया । गोपालप्रसाद व्यास के जन्मदिन पर प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले इस व्यंग्य विनोद दिवस का इस बार का विशेष आकर्षण उनकी प्रिय पुत्राी डाॅ0 रत्ना कौशिक के निर्देशन में निर्मित वेबसाईट के शुभारंभ का था। इस वेबसाईट के निर्माण की सभी वक्ताओं ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की।
प्रेम जनमेजय को व्यंग्यश्री सम्मान के तहत इक्कतीस हजार रुपए की राशि, प्रशस्ति -पत्रा, प्रतीक चिह्न, रजत श्रीपफल, पुष्पहार एवं शाल प्रदान किया गया। प्रेम जनमेजय ने सम्मान को ससम्मान ग्रहण करते हुए कहा- सम्मान चाहे तेरह हजार को हो, इक्कतीस का हो या एक लक्ष का, यदि लेखक का लक्ष्य पुरस्कार है तो यह एक ऐसा लाक्षागृह है जिसमे से उसे कोई कृष्ण भी नहीं निकाल सकता है। पिछले एक दशक में बड़ते हुए उपभोक्तावाद एवं बाजारवाद ने हमारे जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। बढ़ते हुए अंध्ेरे को समाप्त करने के स्थान पर उसके स्थानांतरण का नाटक करके हमें बहलाया जा रहा है। बहुत आवश्यक्ता है व्यवस्था के षड़यंत्राों को समझने की और उन पर व्यंग्यात्मक प्रहार करने की। आवश्यक्ता है व्यंग्य के पिटे पिटाए विषयों से अलग हटकर कुछ नया दिशायुक्त सोचने की।’
18 मार्च 1949 को जन्में डाॅ0 प्रेम जनमेजय की अब तक नौ व्यंग्य कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रेम जनमेजय को अनेक सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। वे प्रसिद्ध पत्रिाका ‘व्यंग्य यात्राा’ के संपादक हैं। इस अवसर पर श्रीलाल शुक्ल पर केंद्रित ‘व्यंग्य यात्राा’ के अंक का लोकार्पण भी किया गया।

कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए प्रसिद्ध व्यंग्यकार डाॅ0 ज्ञान चतुर्वेदी ने अपनी व्यंग्यात्मक उक्तियों एवं हिंदी व्यंग्य की स्थिति को स्पष्ट तो किया ही साथ में पं0 गोपालप्रसाद व्यास की रचनाशीलता और प्रेम जनमेजय की विशिष्ट रचनात्मकता की चर्चा की। डा0 ज्ञान चतुर्वेदी ने सामयिक लेखन पर व्यंग्य करते हुए कहा कि आज का रचनाकार टखने तक के पानी में तैरने की प्रतियोगिता का खेल खेल रहा है। उन्होंने कहा कि प्रेम जनमेजय ने सतत व्यंग्य-लेखन तो किया ही है पर उससे बड़ा काम ‘व्यंग्य यात्राा’ का कुशल संपादन एवं प्रकाशन कर के किया है।
समारोह के आरंभ में हिंदी भवन के मंत्राी प्रख्यात कवि डाॅ0 गोविंद व्यास ने अपने स्वागत भाषण में व्यंग्यश्री सम्मान की पारदर्शी प्रक्रिया की चर्चा करते हुए कहा कि हमारा प्रयत्न रहा है कि इस सम्मान की प्रतिष्ठा पर आंच न आए। उन्होंनें गोपालप्रसाद व्यास के हास्य व्यंग्य साहित्य का अभूतपूर्व योगदान की चर्चा करते हुए कहा कि उनसे मिले संस्कारों का ही परिणाम है कि हिंदी भवन की प्रतिष्ठा दिनों दिन बढ़ रही है।
हिंदी भवन के अध््यक्ष त्रिालोकीनाथ चतुर्वेदी ने आर्शीवचन देते हुए व्यास जी के योगदान का स्मरण किया और प्रेम जनमेजय को उनके उत्कृष्ट व्यंग्य लेखन के लिए बधई दी। उन्होंनें पं0 गोपालप्रसाद व्यास के विशिष्ट रचनात्मक योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि उनपर निर्मित वेबसाईट इस महान रचनाकार के अनेक आयाम उद्घाटित करेगी। इस अवसर पर खचाखच भरे हाॅल में राजधानी के अनेक प्रतिष्ठित साहित्यकार उपस्थित थे।
--प्रस्तुतिः देवराजेंद्र

3 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

प्रेम जनमेजय को व्यंग्यश्री सम्मान प्राप्‍त करने की बहुत बहुत बधाई....

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बहुत बधाई!!

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

प्रेमज्ञान का
एक चित्र
खींचा गया
था, वो
कहां है
उसे भी
दिखलाओ।